Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 16: कल / डर

कल किसी कहानी में
समाज का चेहरा दिखेगा नहीं
कोई कथाकार
ऐसी शक्ल बुनेगा नहीं
क्योंकि -
वह इतना जान लेगा
कि डरने लग गया है
इन्सां अपने अक्स से
अपने बिम्ब से
वह स्वंयं को
जानना चाहेगा नहीं
और
वह जियेगा
सपनो में
जागेगा नहीं

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