Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 15: कुछ शब्द जो अधूरे राह गए

First, all the things I write here does not necessarily relate to me.
कि अर्ज़ किया है
जमाने में अनजान सिर्फ हम ही नहीं है
अँधेरे में डूबे कई और लोग भी है
कि हम नादाँ को करते हो क्यों परेशां
इस महफ़िल में तिरे आशिक कई और भी है||
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है भीड़ बहुत वीराने में, इक दो राख हो जाए तो क्या है
वजूद तिरा इत्ता सा, जो ख़ाक हो जाए तो क्या है
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ओस की बुँदे गल रही थी, धुंध पानी की घास पे चल रही थी
झील किनारे बैठा था मैं, ना जाने वो क्यूँ मचल रही थी
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अब उस की मर्जी किस को किस रंग में रंगता है
सोचा तो था इस घरोंदे को घर बनायेंगे हम
देखना है घर बनता है, या खँडहर बनता है?

hum sab shuru me chahte to yahin the ki desh ko ghar banaye par end me kya hoga kisi ko pataa nahin koi foreign chalaa jaayega koi badaa officer is dekh ko khokla karega aur kai kuch aur (koi kya pataa achcha kaam bhi kar jaaye)


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पक चुके, पकी बातों से, अब पगला ना करो यारो
खामोश क्यों है महफ़िल, कुछ हंगामा करो यारो
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खाली दिल रह सकता नहीं,
दिल में "बीता" कुछ रखता नहीं ||

जान सकता है मेरे बारे में सबकुछ,
पर मुझे जान कोई सकता नहीं ||
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सोचा ना था, कभी तुझे याद करेंगे
खुदा से तेरी, कभी फ़रियाद करेंगे

अब तो फितरत सी हो गयी है,
तेरा नाम लेने की,
तुझे याद करने की,
जुर्रत सी हो गयी है ||
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ना जाने क्या हुआ है मुझको
कुछ खोया खोया सा रहता हूँ
रातों को नींद नहीं आती
दिन में सोया सोया सा रहता हूँ
(nightout habit in poetic words)

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