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Showing posts from July, 2011

Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 16: कल / डर

कल किसी कहानी में समाज का चेहरा दिखेगा नहीं कोई कथाकार ऐसी शक्ल बुनेगा नहीं क्योंकि - वह इतना जान लेगा कि डरने लग गया है इन्सां अपने अक्स से अपने बिम्ब से वह स्वंयं को जानना चाहेगा नहीं और वह जियेगा सपनो में जागेगा नहीं

Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 15: कुछ शब्द जो अधूरे राह गए

First, all the things I write here does not necessarily relate to me. कि अर्ज़ किया है जमाने में अनजान सिर्फ हम ही नहीं है अँधेरे में डूबे कई और लोग भी है कि हम नादाँ को करते हो क्यों परेशां इस महफ़िल में तिरे आशिक कई और भी है|| ---------------------------------------------------------------------- है भीड़ बहुत वीराने में, इक दो राख हो जाए तो क्या है वजूद तिरा इत्ता सा, जो ख़ाक हो जाए तो क्या है ---------------------------------------------------------------------- ओस की बुँदे गल रही थी, धुंध पानी की घास पे चल रही थी झील किनारे बैठा था मैं, ना जाने वो क्यूँ मचल रही थी ---------------------------------------------------------------------- अब उस की मर्जी किस को किस रंग में रंगता है सोचा तो था इस घरोंदे को घर बनायेंगे हम देखना है घर बनता है, या खँडहर बनता है? hum sab shuru me chahte to yahin the ki desh ko ghar banaye par end me kya hoga kisi ko pataa nahin koi foreign chalaa jaayega koi badaa officer is dekh ko khokla karega aur kai kuch aur (koi kya pataa achcha k...

Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 14:

वचन बद्धता मैं या तो नहीं करता तुम्हारी परवाह; गर करता भी तो नहीं है व्यक्त करने की चाह; मुझे यकीं नहीं किसी पर भी ना तुम पर, ना अपने आप पर भी; पर इतना कह सकता हूँ मांगोगी तो - ये हस्ती है तेरे लिए ये मुस्कान तुम्हारी है, ये वजूद है तेरा, ये जान तुम्हारी है" ये मेरे वचन बद्धता है अब तो मैं अपनी भी नहीं सुनूंगा ================================================= क्यों हो गया आज आसमां शराबी है ये कोई जादू या मेरे दिल की खराबी क्यों हो गया आज आसमां शराबी यूँ तेरी जुल्फें जो लहराई क्यों है काली घटा छाई क्यों शर्माए ये फूल देख तेरे होंठ गुलाबी है ये कोई जादू या मेरे दिल की खराबी क्यों हो गया आज आसमां शराबी चेहरे के तुम्हारे, सामने ये चाँद काला हो गया धीरे से तुम जो मुस्काई शब् में उजाला हो गया जाती हो कहाँ तुम पलभर में ना की है अभी तो गुस्ताखी है ये कोई जादू या मेरे दिल की खराबी क्यों हो गया आज आसमां शराबी ========================================= ये मेरा देश है  जैसे विदेश है हिंदी है वतन की भाषा मेरी अंग्रेजी मैं बोलता हूँ अंग्रेजी में न...

Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 13: INTERN एक इन्टर्न को भी जीने का अधिकार है

ये ना करो, ये अत्याचार है एक इन्टर्न को भी जीने का अधिकार है साला, सुबह आठ बजे बुलाते है शाम पांच तक पकाते है और नेट की स्पीड बेकार है एक इन्टर्न को भी जीने का अधिकार है क्या चाहते है पता नहीं बस फंडे पेलते जाते है हम सुने परवाह नहीं, बस अपनी धुनी रंवाते है एक इन्टर्न को भी जीने का अधिकार है रूपये दे रहे दस हज़ार "वर्क वैलू" चाहिए पचास हज़ार बोलते है "रेज़रफिश" लेवल की साईट बनाओ हम बना देंगे १०, बीस लाख देके बताओ खाना तो ऐसे चाहते है मानो हम अचार है एक इन्टर्न को भी जीने का अधिकार है

Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 10: जाएं तो जाएं हम किधर जाए

जाएं तो जाएं हम किधर जाए, इसी मुश्किल में महफ़िल सजाये जिए तो जिए कैसे बिन तेरे जैसे बिन पानी जीवन जी जाये मायने बदल गए कई रिश्तो के दोस्तों को , उनको पहचाना जाए मंहगे हुए आम इसी बहाने चुराने आम आमबाग जाए पौधे बोये थे मैंने कुछ दिन पहले सुन्दर सुहावने आज कुछ फूल आये |

Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 9: आज का इंसान

मैं खुश हूँ या नहीं वो खुश नहीं होगा तभी मैं खुश रहूँगा सब के सर पर पाँव रख कर मैं अपनी मंजिल चधुन्गा काम ऐसा कर जाऊं खुदा की आँखे भर जाए देख मेरी इंसानियत हैवान भी डर जाए करू कुछ ऐसा की खून की हो वैसाखी ऐसा ही शैतान हूँ मैं हूँ मैं इंसान या फिर कोई हैवान हूँ मैं

Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 8: मन

हो जाऊँ कभी मैं तेज (बिजली) सा सूरज की तेज किरण सा घुमु मैं कहीं भी हो घर मेरा मधुवन सा राज करू जहां पर मैं कहलाऊँ मैं भगवन सा जो चाहू वो मिल जाए वो … जाए वो जी जाए झूमु कभी मैं सावन सा कभी सोचता हूँ दोडू भागु कस्तूरी के लिए जैसे वन में कोई हिरन सा कभी कहीं खो जाऊँ मैं आसमा के तारो जैसे चमकू कभी मैं टिम टिम सा कभी होते हुए भी नहीं दिखु चन्दा सा कोई अमावस का कभी कुबेर बनू मैं तो कभी पतझर के वन सा भूखा रहूँ मैं पैदल चलू मैं धीमा हो जाऊं मैं पल पल सा चाहत है या कोई समंदर मन क्या मेरा चितवन सा.

Manan 2: उपदेश :)

इंसान गलत नहीं होता उसकी सोच गलत होती है इंसान गलत हो ऐसा बहुत कम होता है ज्यादातर उसकी सोच गलत होती है | हर इंसान अपने आप में सही होता है | अगर उसको पता ही होता की उसकी कोई बात या फैसला गलत है तो वह उसको सही कर लेता | वह चीज़े सही नहीं करता क्योंकि उसको विश्वास है वो जो कर रहा है वो सही है, ऐसा ही होना चाहिए और दूसरा तरीका पहले वाले से अच्छा नहीं है | इंसान एक समय पर जो भी है वह अपने फैसलों और कर्मो की वजह से है इंसान को अगर लगता है कि उसके पास दूसरो के मुकाबले कम है या वह दुखी है तो वह इन बातों के लिए या तो कोई बहाना बना लेता है या फिर किसी को दोषी ठहरा देता है | हमें इस बात को मानना चाहिए कि कोई भी इस समय किसी भी पायदान पर हो वह अपने कर्मो और फैसलों कि वजह से है | हाँ, ठीक है आपके कर्म या आपके फैसले प्रभावित हुए हो पर इसकी वजह भी तुम्हारी कमियां थी | उस समय आपको इतनी समझ नहीं थी कि खुदसे फैसले ले सके तो आपने सीखने के वजाय दूसरों पर विश्वास करना सही समझा | अब आपको ज्ञान मिल गया है तो आपको वह फैसला गलत लग रहा है | उम्मीद काफी सारे मुटावो और दुखो कि जड़ है इंसान कि एक बड़ी कमजोर...