Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 22: कुछ शब्द जो अधूरे रह गए -2
भाग दौड़ भरे इस दौर में बचपन एवं बाल श्रम पर कुछ शब्द -
फूल खिले है शाखों पर
समां ज़रा महकाने दो
मुरझाना भी जीवन है
पर पतझर को तो आने दो
- गौरव
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कुछ ख्वाब के धागों से पिरोई जिंदगी है
कुछ सागर के मोती सी संजोई जिंदगी है
एक एक पल ख़ुशी का बटोर लेना खुद से
वर्ना बुलबुलों की मानिंद खोई जिंदगी है
- Gaurav
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हम कभी तेरे हम दम ना थे
ना कभी देखा था ख्वाब होने का
फिर जालिम क्यों इलज़ाम लगाया
मयकदे में तिर होने का - Gaurav
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हाल तो ऐसे पूछती है वो जैसे
कई दिनों से हंसने का बहाना नहीं मिला
और हम है कि जीते जाते है जैसे
जिंदगी में एक जमाना नहीं मिला
- Gaurav
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यूँ तो हम तुमसे अक्सर नज़र फेर लेते थे दिल के पंछी को हम ख्वाबो में पंख देते थे |
वो तो बरसात ने किरकिरा कर दिया मौसमहम तो रेगिस्तां में नैय्या बहुत खेते थे
- Gaurav
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Prosopagnosia - Facial recognition disorder
फूल खिले है शाखों पर
समां ज़रा महकाने दो
मुरझाना भी जीवन है
पर पतझर को तो आने दो
- गौरव
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कुछ ख्वाब के धागों से पिरोई जिंदगी है
कुछ सागर के मोती सी संजोई जिंदगी है
एक एक पल ख़ुशी का बटोर लेना खुद से
वर्ना बुलबुलों की मानिंद खोई जिंदगी है
- Gaurav
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हम कभी तेरे हम दम ना थे
ना कभी देखा था ख्वाब होने का
फिर जालिम क्यों इलज़ाम लगाया
मयकदे में तिर होने का - Gaurav
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हाल तो ऐसे पूछती है वो जैसे
कई दिनों से हंसने का बहाना नहीं मिला
और हम है कि जीते जाते है जैसे
जिंदगी में एक जमाना नहीं मिला
- Gaurav
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यूँ तो हम तुमसे अक्सर नज़र फेर लेते थे दिल के पंछी को हम ख्वाबो में पंख देते थे |
वो तो बरसात ने किरकिरा कर दिया मौसमहम तो रेगिस्तां में नैय्या बहुत खेते थे
- Gaurav
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Prosopagnosia - Facial recognition disorder
कभी आओ ख्वावो में तुम, हम बुलाते है,
तेरी यादो के साये भी अब सताते है |
धुंधला सा हो गया है तेरा तसव्वुर,
जिससे मिलते है सब तुमसे ही नज़र आते है |
कुछ अजनबी सी छवि दिखती है आईने में,
और भीड़ में खोये खोये से चले जाते है |
अब तो इलज़ाम लगाने लगा है जमाना भी,
कभी दोस्त, तो कभी हमें सब दुश्मन नजर आते है |
- गौरव
तुझे क्या दूँ
मैं कभी सोचता हूँ
कि मैं तुझे क्या दूँ
मेरे पास क्या है
जो मेरा है
कि ये जान तुने दी है
कि ये हस्ती तुने दी है
दिया है तुने ये ये आसमां
कि ये जमीन भी तुने दी है
क्या दूँ कि
चुका सकूँ ये अहसान साँसे देने का
ये अरमान, अहसासें देने का
मैं तुझे क्या दूँ
इतना बतला दे
तेरी यादो के साये भी अब सताते है |
धुंधला सा हो गया है तेरा तसव्वुर,
जिससे मिलते है सब तुमसे ही नज़र आते है |
कुछ अजनबी सी छवि दिखती है आईने में,
और भीड़ में खोये खोये से चले जाते है |
अब तो इलज़ाम लगाने लगा है जमाना भी,
कभी दोस्त, तो कभी हमें सब दुश्मन नजर आते है |
- गौरव
तुझे क्या दूँ
मैं कभी सोचता हूँ
कि मैं तुझे क्या दूँ
मेरे पास क्या है
जो मेरा है
कि ये जान तुने दी है
कि ये हस्ती तुने दी है
दिया है तुने ये ये आसमां
कि ये जमीन भी तुने दी है
क्या दूँ कि
चुका सकूँ ये अहसान साँसे देने का
ये अरमान, अहसासें देने का
मैं तुझे क्या दूँ
इतना बतला दे
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