Hindi Poem (हिंदी कविता ) - Favorites
By उत्पल बैनर्जी
हमने ऐसा ही चाहा था
कि हम जियेंगे अपनी तरह से
और कभी नहीं कहेंगे मजबूरी थी
हम रहे गोरैयो कि तरह अलमस्त
अपने छोटे से घर को
कभी ईंट पत्थरो का नहीं मानेंगे
उसमे हमारे स्पंदनो का कोलाहल होगा
दुःख सुख इस तरह आया जाया करेंगे
जैसे पतझर आता है, बारिश आती है
कड़ी धुप में दहकेंगे हम पलाश कि तरह
तो कभी प्रेम में पगे बह चलेंगे सुदूर नक्षत्रो के उजास में
हम रहेंगे बीज की तरह
अपने भीतर रचने का उत्सव लिए
निदाघ में तपेंगे, ठिठुरेंगे पूस में
अंधड़ हमें उदा ले जायेंगे, सुदूर अनजानी जगहों पर
जहां भी गिरेंगे, वहीँ उसी मिटटी की मधुरिमा में खोलेंगे आँख
हारे या जीते हम मुकाबला करेंगे समय के थपेड़ो का
उम्र की तपिश में झुलस जायेगा रंग रूप
लेकिन नहीं बदलेगा हमारे आंसुओ का स्वभाव
नेह का रंग...वैसी ही उमंग हथेलियों की गर्माहट
आँखों में चंचल धुप की मुस्कराहट
कि मानो कहीं कोई अवसाद नहीं
हाहाकार नहीं, रुदन नहीं अधूरी कामनाओं का
तुम्हे याद होगी
हमंत की एक रात प्रतिपदा की चंद्रिमा में
हमने निश्चय किया था
अपनी अंतिम सांस तक इस तरह जियेंगे हम
की मानो जीवन में मृत्यु है ही नहीं
================================================
By Ramesh Anupam
तुम बार बार
मेरी कविता में
आती हो
शब्द बनकर
रूप बनकर
चित्र बनकर
ध्वनी बनकर
आती हो तुम
हर बार
मेरी कविता में
कभी खुशबू
कभी रंग
कभी रौशनी
बनकर
प्रकट होती हो
मेरी कविता में
बार बार
हर बार
अपनी कविताओ में
मैं देखता हूँ
तुम्हारा ही स्वप्न
जैसे आकाश देखता है
चन्द्रमा का स्वप्न
धरती बीज का
नदी जल का
तुम ही बार बार
आती हो मेरी कविता में
नए नए रूपों
नए नए प्रतीकों
और नए नए बिम्बों में
उभरता है
तुम्हारा ही रूप
तुम्हारी ही छवि
तुम्हारी ही प्रतिध्वनी
बार बार कागज़ में
कविता बनकर
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हमने ऐसा ही चाहा था
कि हम जियेंगे अपनी तरह से
और कभी नहीं कहेंगे मजबूरी थी
हम रहे गोरैयो कि तरह अलमस्त
अपने छोटे से घर को
कभी ईंट पत्थरो का नहीं मानेंगे
उसमे हमारे स्पंदनो का कोलाहल होगा
दुःख सुख इस तरह आया जाया करेंगे
जैसे पतझर आता है, बारिश आती है
कड़ी धुप में दहकेंगे हम पलाश कि तरह
तो कभी प्रेम में पगे बह चलेंगे सुदूर नक्षत्रो के उजास में
हम रहेंगे बीज की तरह
अपने भीतर रचने का उत्सव लिए
निदाघ में तपेंगे, ठिठुरेंगे पूस में
अंधड़ हमें उदा ले जायेंगे, सुदूर अनजानी जगहों पर
जहां भी गिरेंगे, वहीँ उसी मिटटी की मधुरिमा में खोलेंगे आँख
हारे या जीते हम मुकाबला करेंगे समय के थपेड़ो का
उम्र की तपिश में झुलस जायेगा रंग रूप
लेकिन नहीं बदलेगा हमारे आंसुओ का स्वभाव
नेह का रंग...वैसी ही उमंग हथेलियों की गर्माहट
आँखों में चंचल धुप की मुस्कराहट
कि मानो कहीं कोई अवसाद नहीं
हाहाकार नहीं, रुदन नहीं अधूरी कामनाओं का
तुम्हे याद होगी
हमंत की एक रात प्रतिपदा की चंद्रिमा में
हमने निश्चय किया था
अपनी अंतिम सांस तक इस तरह जियेंगे हम
की मानो जीवन में मृत्यु है ही नहीं
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By Ramesh Anupam
तुम बार बार
मेरी कविता में
आती हो
शब्द बनकर
रूप बनकर
चित्र बनकर
ध्वनी बनकर
आती हो तुम
हर बार
मेरी कविता में
कभी खुशबू
कभी रंग
कभी रौशनी
बनकर
प्रकट होती हो
मेरी कविता में
बार बार
हर बार
अपनी कविताओ में
मैं देखता हूँ
तुम्हारा ही स्वप्न
जैसे आकाश देखता है
चन्द्रमा का स्वप्न
धरती बीज का
नदी जल का
तुम ही बार बार
आती हो मेरी कविता में
नए नए रूपों
नए नए प्रतीकों
और नए नए बिम्बों में
उभरता है
तुम्हारा ही रूप
तुम्हारी ही छवि
तुम्हारी ही प्रतिध्वनी
बार बार कागज़ में
कविता बनकर
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By -SURAJ SONI
पता नही कैसी कैसी अफवाँ फैलाते है लोग
बातों हि बातों में यूँ आसमाँ उठाते है लोग
तू है , या नही है , ये छिड़ चुकी है बहस
तेरे हि दम से तो जुबाँ चलाते है लोग
तेरे हर लफ्ज में थी सत्य की रौशनी
क्यों ये झूठी आयते रचाते है लोग
ये कैसी है रीत , आज के जमाने की
ये कौनसा रिवाज , अब चलाते है लोग
दूसरों को करके यहाँ बेइज्जत
ये कैसा उत्सव मनाते है लोग
निकाला जाता है महफील से हमें
फिर कौनसा समां बंधाते है लोग
सिर्फ शुक्रिया से इनका दिल नही भरता
एहसान किया , दुनिया को जताते है लोग
प्यार तो इनके बस की बात नही
हर किसीको यहाँ फसाते है लोग
रुसवा है तो कोई बडी बात नही
अब कोई, कहाँ किसीको मनाते है लोग ?
SURAJ SONI
===================================
मैं तेरे पास आई हूँ
मुझे भी गा मेरे शायर
मैं तेरी ही रुबाई हूँ
पहन कर चाँद की नथनी
नयी चूड़ी नयी पायल
पहन आई मैं हर गहना
है तेरे संग ही रहना
लहर की चुडिया पहना
मैं पानी की कलाई हूँ
नदी बोली समंदर से
मुझे कर्त्तव्य ने रोका
मुझे अधिकार ने रोका
मुझे हर शख्स ने रोका
मुझे हर प्यार ने रोका
मगर मैं रुक नहीं पायी
मैं तेरे संग चली आई
मुझे तू आँख में भर ले
मैं आंसू की विदाई हूँ
नदी बोली समंदर से
-- कुंवर बैचैन
बातों हि बातों में यूँ आसमाँ उठाते है लोग
तू है , या नही है , ये छिड़ चुकी है बहस
तेरे हि दम से तो जुबाँ चलाते है लोग
तेरे हर लफ्ज में थी सत्य की रौशनी
क्यों ये झूठी आयते रचाते है लोग
ये कैसी है रीत , आज के जमाने की
ये कौनसा रिवाज , अब चलाते है लोग
दूसरों को करके यहाँ बेइज्जत
ये कैसा उत्सव मनाते है लोग
निकाला जाता है महफील से हमें
फिर कौनसा समां बंधाते है लोग
सिर्फ शुक्रिया से इनका दिल नही भरता
एहसान किया , दुनिया को जताते है लोग
प्यार तो इनके बस की बात नही
हर किसीको यहाँ फसाते है लोग
रुसवा है तो कोई बडी बात नही
अब कोई, कहाँ किसीको मनाते है लोग ?
SURAJ SONI
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नदी बोली समंदर से
मैं तेरे पास आई हूँ
मुझे भी गा मेरे शायर
मैं तेरी ही रुबाई हूँ
पहन कर चाँद की नथनी
नयी चूड़ी नयी पायल
पहन आई मैं हर गहना
है तेरे संग ही रहना
लहर की चुडिया पहना
मैं पानी की कलाई हूँ
नदी बोली समंदर से
मुझे कर्त्तव्य ने रोका
मुझे अधिकार ने रोका
मुझे हर शख्स ने रोका
मुझे हर प्यार ने रोका
मगर मैं रुक नहीं पायी
मैं तेरे संग चली आई
मुझे तू आँख में भर ले
मैं आंसू की विदाई हूँ
नदी बोली समंदर से
-- कुंवर बैचैन
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