Hindi Poem (हिंदी कविता ) : अपरंपरागत कविताये

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हमने जो राह चुनी है, उसमे कई तुम्हारे जैसे आयेंगे

गर तुमसे नाराज हो गए तो हम बाकी से कैसे निभाएंगे

-- Gaurav
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पता नहीं तू ग़मगीन है या ख़ुशी से सठिया गया है

जो भी हो उसमे में शरीक होंगे भी हम और नहीं भी

-- Gaurav

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सलटना

न जाने इतना क्यों मदहोश था मैं
रात की बात से
या आज की मुलाक़ात से
जो भी था
बड़ी जोर से धड़का था दिल
बड़ी मुस्किल से संभला था दिल
इक ख़याल से दुनिया बदल जाती
वो गलती सलट जाती
-Gaurav

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इस एक चित्र के हजारो अर्थ है
और हजारो अर्थो का कोई अर्थ नहीं
जो एक अर्थ से तू मिल जाए
तो समझ तेरा जीवन व्यर्थ नहीं - Gaurav


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हर एक, दो शब्द होता है

एक चले, दूजे का क्या काम
 Gaurav
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जब हम ना होंगे, जब हमारी खांक पे तुम रुकोगे चलते चलते

अश्कों से भीगी चांदनी में एक सदा सी सुनो गे चलते चलते
- not mine
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एक सन्देश राजनेताओं के लिए
हमें पता है की तुम बिना बिके कोई काम कर सकते नहीं

इसीलिए हम बिकने को मना तुमको करते नहीं

बिकना ही है तो एक रूपये में बिको

कि कोई गरीब खरीदने में तुमको  हिचके नहीं
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खबर हमको भी थी, पता तुमको भी था

हो नहीं सकता था लेकिन प्यार कैसे हो गया - Gaurav


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Note: Many of the poems are just ideas from some point of time, they do not necessarily convey my beliefs as with time, I learn many things and my beliefs change with my knowledge.

हरा भी तू है
केसरी भी तू ही है
पर अंदर से तो
तू भी लाल है
और तू भी लाल ही है
तू हलाल खाता है
तू बलि चढ़ाता है
किसी की जान जाती है
न कुछ तेरा जाता है
न कुछ तेरा ही जाता है

जिस वक़्त जरूरत होती है
मतभेद भूल जाने की
तब ही याद तुझे क्यों  आता है
तब ही याद तुझे कौन दिलाता है
- Gaurav
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जब कटता है है तू लाल बहाता है
फिर क्यों खुद को हरा जताता है
फिर क्यों खुद को केसरी जताता है
- Gaurav
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न जाने कितनी जिंदगी
बर्बाद  तेरे हुस्न की खातिर

न जाने कितने और क़ुर्बा होंगे
न जाने कितने बनेंगे काफ़िर

लाल रंग से सजा हुआ
चेहरा चौंधा देता है
चलता हूँ यही आस लिए
इसी मौत के मंजर में मिलूंगा तुझसे फिर
- Gaurav
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Piku - Constipation
दूध सी धवल
चाँद की रौशनी में
देखा किया करता हूँ
मैं राह तुम्हारी
और तुम हो की जैसे
टूटते बादल सी
बिखर जाती हो
आगाज़ होता है
अहसास होता है
नहीं मिलती तो
बस पहचान तुम्हारी
- गौरव


कभी हम जिंदगी में मिठास घोलते है
कभी हम मीठे से जिंदगी तोलते है
- गौरव


कभी कभी जिंदगी से डरता हूँ
जब डरता हूँ
तो खुद से पूछ लेता हूँ
कि क्यों डरता हूँ ?
कोई वाजिब वजह नहीं मिलती
और मैं अपनी राह चलता हूँ
 -- Gaurav



आओ, क्यों न हम
सुख दुःख साझा कर ले

मुस्कुराना नहीं आता मुझे,
मेरी हंसी भी तू हंस ले

सूनी दिखती है  दुनिया मुझे
हजारो रंग संसार के
तू अपनी आँखों में भर ले

की तेरा मुस्कुराना ही
मेरा  मुस्कुराना है

और जो चमक है इन आँखों में
उसी से धड़कता है दिल मेरा

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कभी गम हो तो
रख देना काँधे पे सिर अपना अपना
समेट लूंगा मैं सब आंसू
ज़मीन पर न गिरने दूंगा
ये आंसू मेरे है
हक़ नहीं है
इनपर किसी और का

जब भी कोई
नयी कल्पना
प्रज्वलित हो
निकल पड़ेंगे युहीं
पूरित करने का
स्वप्न लेकर
लक्ष्य हमेशा तुम होगी
और मैं रास्ता बनकर
तुमसे मिलता रहूँगा
असर न होगा
किसी दौर का
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टप टप करके
पड़ते है कदम
और दूर
शहनाइयां बजती है
कभी मोर
कभी तितलियाँ
बीच बगन
सब नचती है

खिलते है सारे फूल यहाँ
मोह, रसम उत्पात लिए
बैर नहीं इनमे कोई
शादी मातम में कलिया
बिन खोट बराबर सजती है

हाँ है इनमे कुछ तकरारे
तब ही तो दोनों कट्टी है
मतभेग यहाँ टिकते पलभर
बाकी खूब यहाँ सबकी पटती है

-- Gaurav

अरमान हूँ
विश्वास हूँ
संवाद हूँ
आवाज़ हूँ
परवाज़ हूँ
ललकार हूँ
मझधार हूँ
पतवार हूँ
इकरार हूँ
इनकार हूँ
इज़हार हूँ
इसरार हूँ
इस देश की आवाज़ हूँ

-- Gaurav

शाम हुयी की कोहरा ऐसे छाया
याद कोई उसको मेरे जैसे आया
मोहब्बत की शमा ने परवाने से
मरने के सिवा उसने क्या पाया
महफ़िल थी जिसके लिए
महफ़िल में वो ही न आया - गौरव


वक्त वे वक्त आंसू भी हँसते है
जब कभी दो दिल जलते है
कभी मजाक होता है कभी प्यार
बात बात में नजरिया बदलते है
कहती हो मेरा वजूद क्यों है क्या है
झांक कर देखो कोई तुम पर कितना मरते है
कभी दिल सोचता है तुम कौन हो ?
क्यों तुम पर आपनी जां कुर्बां करते है - गौरव


मैं तुम्हे  रिझाने के लिए कविता लिखता हूँ
अपने मन की बात इसमें भरता हूँ
पर मैं जब भी तुम्हे सुनाता हूँ
तुम समझकर भी नासमझ बनती हो
अपनी ख़ुशी संकुचित कर के आह भारती हो
कवि होना मेरी कमजोरी मैं मानता हूँ
तुम समझ गयी हो मैं  जानता हूँ
तुम अपनी मुस्कान -
को  छिपाने की कोशिश करती हुयी
जो तुम्हारे कितने ही छुपाने से
नहीं छुपती है
और तुम्हारे गालों पर
संध्या के समय
सूरज की लाल लालिमा सी  दिखती है |
आश्चर्य के भाव व्यक्त करती हो
मैं भी जानता हूँ
आह भर के बैठ जाता हूँ
तुम थोडा हट के मुस्काने लगती हो
और मैं कविता लिखता  हूँ



जिंदा हूँ पर जिंदगी खोज रहा हूँ
दोस्त तो बहुत है पर एक दोस्त खोज रहा हूँ

गुजार लीया जो जीवन
उसे जीने  की सोच रहा हूँ

पानी बन जाऊँगा सब  सम्मान करेंगे
किसे पता मैं भी ओस रहा हूँ

जिसे कहते  तो है सब प्यारी
पर ठोकरों की किस्मत को  कोस  रहा  हूँ

खुश है सब  पर किसी ने नहीं पूछा
क्यों मैं अब तक मौन रहा हूँ


मोहब्बत आसां काम नहीं है
न कर की .... जाम नहीं है


लिवा लाएगी ये हसरत उस मोड़ पर
सारी जिन्दगी तड़प है आराम नहीं है


मुहीम -ए- शुरुआत तो सभी करते है
बात ख़त्म करने का जज्बा नहीं है

रहगुजर बनने के इकरार में क्या है
कम्बक्त  दिल मेरा  साफ नहीं है

If you ever feel sad sometime
just remember this mantra of mine
whatever you are in life
is because of your decisions
&
those decisions at that night
according to you (them) situations were right

so now you can do nothing
by sitting and crying
just improve yourself
and keep on trying


2007 से पहले लिखी गयी है तो कुछ बाते इस समय से मेल नहीं खाती

हम आजाद होते तो
यह देश इक नगमा होता
संगीत झरने पशु पक्षी देते
गायक भारत जन होता
बारिश होती न कहीं बाढ़ आती
जब पानी भी आजाद होता
न घर इतने तबाह होते
न कोई घरौंदा बर्बाद होता
घर कोई टूटता भी तो
मदद सभी करते
न किसी की जाती जान
न कोई भूखा रहा होता
व्यवस्था भी इतनी होती
अगली सुबह स्वागत के लिए
नया घर तैयार होता
होता यह तब जब ...
जब भ्रस्ताचार न होता
जब भारतवासी आजाद होता
पर हम आजाद नहीं है
हम आजाद होते तो
वन्दे शताब्दी पर न इतना विवाद होता
न ही कोई झंडा विवाद होता
न कभी गुजरात जैसे दंगे होते
सब में भाई वाद होता
जब भारत आजाद होता
पर हम आजाद नहीं है
हम आजाद होते तो
कोई आपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए
न रोज जीता
न रोज (जीकर ) मरता
न कोई आपनी आत्मा की सुनने में शर्म करता
कुछ भी होता
न ये कविता होती
न इस कविता का कवि
मैं होता
गर हमारा देश आजाद होता



अभी मेरी मुठ्ठी में कई रंग बाकी है
अब तुझे इतना ही शौक है
तो पानी से होली खेल
किसने मना की* है
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गर सांस लेने को जीना कहते है
ऐसे तो सभी जीया करते है
होठो पर मुस्कान रहती है
मन में किसी का इंतजार कीया करते है
कहते हो हम वही है जो तुम सोचते हो
बाद में खुद पे ही शक कीया करते है
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कहते रहे हम हमी को हम यूँ ही
ना जाने कब हुए हम हमी से हम यूँ ही

कुछ बरसो में ये खजाना हमने पाया है |
क़त्ल का इल्जाम उसने हमी पर लगाया है ||
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तेरा मिलना

मेरी सांस थम जाती है
जब सामने वो आती है
सूखे फूल खिल उठते है
गुलशन में बहार आती है
बेजुबां लफ्ज हो जाते है
बात नजरो से की जाती है
मुस्कुराने पर उसके, चेहरे पर
मुस्कान ऐसी छाती है
जैसे रिश्वत लेने के बाद
नेता के मुख पर आती है

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हम तुम

वक्त वे वक्त आंसू भी हँसते है
जब कभी दो दिल जलते है
कभी मजाक होता है कभी प्यार
बात बात में नजरिया बदलते है
कहती हो मेरा वजूद क्यों है क्या है
झांक कर देखो कोई तुम पर कितना मरते है
कभी दिल सोचता है तुम कौन हो ?
क्यों तुम पर आपनी जां कुर्बां करते है

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एक कोशिश हास्य कविता की

मंत्री जी जा रहे थे मांगने मत
सेकेट्री ने कुछ बोला तो
बोले -मत अब कुछ बक
हम लेने जा रहे मत
सेकेट्री बोला -हम जानते है जहाँपनाह
है आप में बहुत हिम्मत
झूठ बोलते फ़टाफ़ट
पर जब भाषण नहीं जाओगे रट
कहाँ से आएगी हिम्मत
याद है पिछली बार क्या हुआ था
अपनी पार्टी का नाम तो भूल ही गए
ओपोसिशन का बहुमत ले के आ गए
यह सुन मंत्री जी ने अपनी भूल सुधारी
बोले कहाँ है पर्ची हमारी
याद कर बोले -लो लिया रट
अब तैयार करो हमारा रथ
रथ से पहुंचे इमारत
वहाँ हुआ भव्य स्वागत
लोगो की भीड़ ऐसे
भागी चली आ रही थी
मानो उनकी ट्रेन
छूटी जा रही थी
मंत्रीजी ने सोचा -
होगी हमरी आवभगत
पर जब पड़े जूते चप्पल अंडे
लगा ये है आफत
मंत्री जी ने बहूत की कोशिश
पर उनको न समझा पाए
एक ही रास्ता सुझा
और खुद भाग आये
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