Thought ( मनन ) - 25: चल जिदगी जी ले

मैंने अपना पहला लेख (उत्तर पुस्तिका को छोड़ के) आठवी कक्षा में लिखा था | उस लेख का विषय था 'प्यार', पर उसमे मेरी कहानी नहीं थी बल्कि कुछ सवाल थे और कुछ जवाब भी थे | सवाल इस बारे में थे कि प्यार किस चिड़िया का नाम है, इसे सिर्फ दो प्रेमियों से क्यों जोड़ा जाता है और जवाब इसलिए कि मुझे हमेशा से (सिर्फ) प्रश्न करने वालो से थोडा सा लगाव कम रहा है | मैं समझता हूँ कि प्रश्न करने से पहले इंसान को खुद जवाब ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए, अगर कोशिश की है तो आपके पास कुछ जवाब होंगे - सही या गलत मायने नहीं रखता | कभी कभी मैं ये भी सोचता हूँ कि मैंने जिंदगी में किसी से प्यार नहीं किया | हिंदी लिखते  वक़्त शब्द कहाँ से कहाँ पहुँच जाते है कुछ पता नहीं चलता |

"चल जिदगी जी ले " - हाल ही में प्रकाशित हुई फिल्म बर्फी के लिए है | फिल्म का मेरे दिल के करीब होने के कई कारण  है पर जिसका जिक्र मैं करना चाहता हूँ वो है - ख़ुशी ।  ख़ुशी कहाँ नहीं है? इक ये ही तो चीज़ है जिस पर तुम्हारा हक़ है, जो तुम्हारे हक़ को परिभाषित करती है । इक यही तो चीज़ है जो तुम्हारी जिंदगी को परिभाषित करती है , तुम्हारे मक्सद बनती है । फिर भी हम क्यों खुश नहीं रह पाते?  क्योंकि इंसान सोचना सीख गया है ।

क्या कहू मैं अपने दिल की
इसने गुनाह कोई किया ही नहीं

कोई कहता है जिया है हर पल को
कोई कहता है कभी जिया ही नहीं

या तो दिल में बसाया है हजारो को
या किसी से कभी प्यार किया ही नहीं 



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