Hindi Poem (हिंदी कविता ) - 17:

मायूस ना हो

मालूम होता है

गिरने लगे है पत्ते

नग्न हो चुकी कुछ शाखे है

मायूस ना हो इस पतझर से

बहारो के आने की

हमने सुनी कुछ बाते है

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स्वार्थ

बस इतना मांगता हूँ
मैं जो भी करू खुश रहू
मेरा परिवार खुश रहे
मेरा देश प्रसंनित हो
और संसार खुश रहे

मेरा भला हो
मेरे परिवार का भला हो
भला हो देश का
ये संसार फूले फले

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सीधे साधे शब्द

सीधे साधे शब्द है
सीधी सी मेरी कविता है
सीधी है ......(जलेबी)
और सीधे से ही हम है

परेशां है हम दिल से
प्यार करना मुश्किल नहीं
नफरत करना मुश्किल है
ये दिल बड़ा कातिल है
कि फूल देखा नहीं
मोहब्बत पहले कर बैठता है
और मना करो तो
छुईमुई कि भांति एठ्ता है ...........

लिखा हुआ हर एक शब्द काल्पनिक है | इसका किसी भी व्यक्ति या वस्तु से वास्तविक सम्बन्ध नहीं है | अगर किसी व्यक्ति का इससे कोई वास्तविक सम्बन्ध पाया जाता है तो यह मात्र एक संयोग होगा |

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वजह - Reason

हाँ इसकी वजह कई है
उनमे से एक यही है
तुमसे मिलता तो
हो जाता तुम्हारा
बाकी से बेगाना
बाकी से अनजाना
ये मेरा फैसला था
तुमसे भी उतना दूर रहू
जितना किसी और से हूँ
हाँ खोया है मैंने तुम्हे
इस आशा से
कि मैं सबको पा सकु

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