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बैगन

कुछ फैला हुआ सा डर है, कुछ छाई है इर्ष्या सी, जीत से नहीं, खुश होते - हार से दूसरों की, ना जाने क्या चाहते हैं, थाली का बैगन हो जैसे, आँखें मूंदे भागते जाते हैं।